शिक्षा आपातकाल पर राष्ट्रीय सहभागिता

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26 करोड़ बच्चों के लिए पुन: शिक्षा की शुरुआत एवं नवीकरण करें !

भारत में शिक्षा आपातकाल में हो रही लगातार वृद्धि की दिशा में चिंतित व्यक्तियों और संगठनों ने वस्तुतः 16 जुलाई 2021 को इसी संदर्भ में ‘एक साथ एक संगठन’ की तरह काम करने के ध्येय से वर्चुअली मुलाक़ात की, जिससे हमारे देश के वे बच्चे, जो विशेष रुप से सबसे गरीब और वंचित समूहों से हैं, उनके सामने भविष्य में आने वाली समस्याओं और संकटों का समाधान किया जा सके। सहभागिता के द्वारा दो रास्तों पर विशेष रूप से काम करने का निर्णय लिया गया —

  1. तत्काल स्कूलों और समुदायों को शिक्षा से संबन्धित सहायता प्रदान करना; और
  2. सभी बच्चों के लिए समान रूप से सार्थक सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए सामाजिक संघटन के माध्यम से सक्षम अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना, जिससे कि संबंधित स्वास्थ्य और आजीविका के मुद्दों पर भी काम हो सके।

सहभागिता का पूर्ण रूप से प्राथमिक और परिभाषित सिद्धांत समानता है— साथ ही यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि शिक्षा के अधिकार (आरटीई) की पूर्ति में सीखने और विकास के अवसर सभी के लिए उपलब्ध हों। कई सारी गैर-सरकारी संगठनों, कुछ राज्य सरकारों और ज़िला अधिकारियों की तरफ से इस आपातकाल से निपटने के लिए प्रावधान किए गए हैं, जिन पर हमें शीघ्रता एवं कुशलता के साथ काम करने की ज़रूरत है। हम उन सभी का आह्वान करते हैं जो हमसे संपर्क स्थापित करने, अपने अनुभवों को साझा करने और इस सामूहिक प्रयास से जुड़ना चाहते हैं। बैठक के बारे में जानकारी यहाँ उपलब्ध है।

विनाशकारी कोविड -19 महामारी ने लाखों लोगों की जान ले ली है। लॉकडाउन ने लाखों लोगों की रोजी-रोटी बर्बाद कर दिया है। शवों एवं जलती चिताओं के ढेर तथा सैकड़ों मील पैदल चलने वाले प्रवासियों ने देश भर में स्वास्थ्य और आजीविका की आपातस्थिति को स्पष्ट कर दिया है। लेकिन एक और मौन और अदृश्य आपातकाल, आगामी भविष्य में भारत के गरीब तबके के लोगों की सम्मान के साथ रोज़गार और समानता के जीवन तक उनकी पहुँच को खत्म करने की धमकी दे रहा है। भारत के कई हिस्सों में, सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली ने पिछले वर्ष एक बड़े हिस्से के साथ छात्रों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए और आने वाले वर्षों में भी ऐसा जारी रहेगा, इसकी संभावना है। हजारों बच्चे जिन्होंने एक या दोनों अभिवावक को खो दिया है, और लाखों लोग जिनकी नौकरियाँ चली गई हैं और उच्च स्वास्थ्य के खर्चों और नुकसान से प्रभावित हैं, ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए यह बहुत ही कठिन है कि वे अपने परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए कुछ काम करें या फिर स्कूल वापस आकर अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाएँ, वास्तव में यह इन दोनों ही परिस्थितियों के बीच एक कठिन विकल्प चुनने की आवश्यकता जैसी स्थिति है। स्कूल बंद होने से कुपोषण, बाल उत्पीड़न, बालश्रम, स्कूल छोड़ना तथा जल्दी शादी जैसी घटनाएँ तेज़ी से बढ़ी रही हैं, यही वह भयानक स्थिति है जिसे हम शिक्षा में आपातकाल के रूप में संदर्भित करते हैं। अधिक पढ़ें।

सरकारी, सहायता प्राप्त स्कूलों और ‘गरीब’ निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 26 करोड़ से अधिक बच्चों में से अधिकांश पर शिक्षा आपातकाल का बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। संसाधन संपन्न निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा का प्रावधान हो गया और वो इसकी मदद से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, ये ऐसे समूह के लोग हैं जिनके पास हर प्रकार की सहयोगी वस्तुओं और सेवाओं की घरेलू पहुँच मौजूद है। इसलिए, शिक्षा में व्याप्त असमानता बहुत तेज़ी के साथ स्थिति को और बदहाल बना रही है।

पुन: शिक्षा की शुरुआत करें— “शिक्षा आपातकालीन कक्ष” को स्थापित करें

बच्चों को, विशेष रूप से वंचित समूहों के बच्चों को संरचित सीखने के अवसरों के साथ ही सहायता की भी आवश्यकता होती है। शिक्षा आपातकाल को संबोधित करने के लिए हमें बच्चों और शिक्षकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ उन्हें पोषण प्रदान करने और शिक्षकों के साथ बच्चों की शिक्षा पुन: जारी रखने के उद्देशय से उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक-भावनात्मक विकास को पूर्ण करने के लिए हर संभव प्रयास के साथ ही सार्थक बातचीत और निष्कर्ष के उपाय तलाशने की भी आवश्यकता है।

प्रसारण टीवी या रेडियो के माध्यम से “रिमोट लर्निंग” बच्चों की शिक्षा संबंधित व्यस्तता और तारतम्यता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। अधिकांश राज्यों में सामग्री और शिक्षक प्रशिक्षण से संबन्धित पर्याप्त तैयारी के अभाव में ही “डिजिटल शिक्षा” में परंपरागत शिक्षा का रूपान्तरण कर दिया गया है।

बदली हुई व्यवस्था में बच्चे शिक्षकों और अपने दोस्तों से किसी भी प्रकार का बातचीत नहीं कर पाते जिसका इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सरकार के प्रयोजन में व्याप्त स्पष्टता की कमी ने शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों के मध्य भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में पुन: औपचारिक शिक्षा को शुरू करने के अलावा कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं है। स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने के लिए प्रावधान के तौर पर कई जिलों ने “युद्ध कक्ष” स्थापित किए हैं । इसी तरह, हमें शिक्षा में आपातस्थिति का सामना कर पाने के लिए प्रत्येक ज़िले में एक ‘शिक्षा आपातकालीन कक्ष’ की आवश्यकता है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि सभी बच्चे पूर्ण रूप से सुरक्षित और संरक्षित होने के साथ प्रतिदिन शिक्षा में भाग ले सकें जो कि वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने है। जिससे लोगों की समस्याओं और शिकायतों का समाधान किया जा सके।

शिक्षा का नवीनीकरण करें (शिक्षा जिससे विकास और गरिमा कायम रहे)

महामारी के कारण आज शिक्षा से संबंधित जो संकट हम सभी के सामने मौजूद है, उस पर तत्काल पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। शिक्षा का प्रारूप ऐसा हो जो कि बच्चो के सर्वांगिक विकास के साथ ही उनके सामाजिक-भावनात्मक ज़रूरतों के लिए भी जिम्मेदार हो, विशेषकर ऐसे समय में जब स्कूली शिक्षा और बच्चों के बीच एक लंबा अंतराल हो गया है। लघु ‘ब्रिज कोर्स’ के बाद ‘ग्रेड स्तर’ की शिक्षा की फिर से शुरूआत करने में जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। आगामी कुछ वर्षों के लिए ज़रूरी है कि शिक्षा ‘उपचार’ या पाठ्य पुस्तक संस्मरण आधारित होने के बजाय, शिक्षार्थी संदर्भों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील हो। हर एक बच्चे की सीखने की गति और उसकी आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर लचीलेपन की आवश्यकता है, क्योंकि समस्याओं के समाधान के लिए एक समान दृष्टिकोण हानिकारक साबित होगा।

हालाँकि, सिद्धांतों और प्रोटोकॉल को विकसित, कार्यान्वित और मॉनिटर किए जाने की ज़रूरत है, ताकि यह देखा जा सके कि सभी बच्चों को समान रूप से सीखने के अवसर मिल रहे हैं या नहीं। शिक्षा से संबधित खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि किए जाने की भी आवशयकता है। बच्चों को आगे बढ़ने और विकसित करने में सक्षम बनाने के लिए महामारी ने शिक्षकों और अधिकारियों पर एक बड़ी जिम्मेदारी डाल दी है।

सहभागिता की दो रस्तों पर एक साथ कार्यवाही

  1. आरटीई को साकार करने के लिए सामाजिक संघटन— यह कार्य समूह विभिन्न राज्यों में विभिन्न समूहों के संगठनों से जुड़ेंगे, जिसमें माता-पिता, नागरिक समाज संगठन, शिक्षक समूह शामिल होंगे जोकि शिक्षा आपातकाल की समझ बढ़ाने की ज़िम्मेदारी निभाएँगे, जिससे कि नीतियों और कार्यान्वयन की प्रक्रिया सही रास्ते पर आ सके, और लोग अपने बच्चों के लिए आरटीई का उपयोग करने के लिए सशक्त हो सकें।
  2. स्कूलों और समुदायों को शैक्षणिक सहायता— यह कार्य समूह उन मॉडलों की पहचान करने की दिशा में काम करेगा, जिनका उपयोग महामारी के दौरान किया गया है, संसाधनों को क्यूरेट करने के साथ ही इन्हें समुदायों में बच्चों के साथ काम करने वाले व्यक्तियों और समूहों के साथ साझा किया जाएगा। वेबसाइट के माध्यम से यह सभी संसाधन माता-पिता, शिक्षकों और स्कूलों के लिए कई भाषाओं में उपलब्ध होंगे।

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